SHAYARI(शायरी)

 


तुमसें शुरु तुम पर ख़त्म, ये इश्क़ मेरा जेहादी सा है,

मिलने को तो हम भी मिल लें किसी और हसीना से ,

पर क्या करें ये दिल तेरा आदि सा हैं ,

जब भी इस दिल ने ख़ुद को कहीं और लगाना चाहा ,

ज़िस्म ने इसका साथ छोड़ दिया और कहा ,

वो एक शख्श ही मेरे लिए ख़ास था ,

बाकि तो सब बढ़ती आबादी सा हैं। 

By-आर जी "बेसुध "


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