पहलगाम-pahalgam

pahalgam

 ज़न्नत की हूरों की ख़ातिर क्यों जन्नत को बर्बाद किया,

पहलगाम की खुबसूरत वादी को क्यों तुमने शमशान किया ,

नए जीवन की सपने संजोकर कोई यहाँ पर आया था ,

कोई अपनी यादों में खूबसूरती भरने जीवनसाथी को लाया था,

तो कोई शान्ति की तलाश में दूसरे देश से आया था,

मगर तुमने तो सारी इंसानियत को शर्मसार किया ,

उनके ख़्वाबों को छोड़ो उन्हें ही मौत के घाट उतार दिया,

कश्मीर का हर मुद्दा जानकर भी हम सभी यहाँ पर आते हैं ,

क्यूँकि हम इंसान हैं और इंसानियत को हम सबसे बढ़ कर मानते हैं ,

धर्म पूँछ कर मारा तुमने अधर्म का तुमने काम किया ,

कश्मीर की उस घाटी को तुमने लहू-लुहान किया ,

एक-एक आतंकी को मार गिराया जाएगा,

सेना की वर्दी पहनकर देवदूत अब आएगा , 

जो गुजर गए उनको श्रदांजलि अर्पित करते हैं ,

अपने दिल से उन पुण्यात्माओं को सम्मान समर्पित करते हैं।

लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'


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