मौलिक अधिकार

यदि आप पैसों से सरोबार हैं,तो आपको बोलने का अधिकार है,
अजी लाइन लगाकर,लाखों लोग आपको सुनने को तैयार है,
अगर आप किसी उच्च पद के उत्तराधिकारी हैं, तो आप सभी मौलिक अधिकारों के अधिकारी हैं,
कुल मिलाकर पद,पैसा और प्रतिष्ठा ही आधार हैं,
जिन से चल रहा,मौलिक अधिकारों का व्यापार है,
मौलिक अधिकारों को रुपया के नीचे दबाया जाता है,
कर्तव्योँ की चादर ओढा कर उन्हें सुलाया जाता है,
अगर खुल भी जाती है कभी उनकी नींद,
तो जाति और धर्म के नाम पर,उन्हें बटंवाया  जाता है।
जय हिंद।
जय भारत।
लेखक -रितेश गोयल 'बेसुध'

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