छिछोरा

यह रचना मैंने एक किशोर की मानसिकता के आधार पर लिखी थी।कृपया इसके आधार पर मुझे ना परखे।

छिछोरा

14 से 26 साल के लड़कों में जवानी का टोरा है,
हर दूसरी लड़की ने उसका ध्यान अपनी तरफ मोडा है,
पढ़ाई में रहता उसका ध्यान बहुत थोड़ा है, इसलिए कुंवारा लड़का लगता छिछोरा है।

लड़का हुआ मैं अभी जवान हूंँ,
थोड़ा नादान हूंँ,
उम्र से 16 साल हूंँ,
शादी का मुझे पता नहीं,
प्यार करने को बेकरार हूंँ,
दोस्तों ने मुझ को पीटा है,
हर बात में घसीटा है,
उनको मैं सबक सिखाउँगा,
लड़की पटाउँगा,
मेरी बंदी को देखकर सब की तशरिफें जल जाएंगी,
अमावस में भी वो चांद नजर आएगी,
लेकर निकलूंगा मोहल्ले में उसे जब मैं बाइक से,
सब यही कहेंगे जलवे हैं भाई के,
उछल-उछल कर जब वह मुझको गले लगाएगी,  मां कसम सभी दोस्तों की सीटी बज जाएगी,
पिक्चर वाले सीन से सबकी आंखें चुँधयाएंगी,
जब वह जाते-जाते मेरे गाल पर पप्पी देकर जाएगी।

कुछ टाइम के बाद लोगों ने पूछा क्यों भाई, लड़की पटाई,कि मोहब्बत.., तो हमारा जवाब यह था कि-

कॉलेज के बजाय दफ्तर में लिखवा चुका था नाम,
8 घंटे पढ़ाई के बजाय करना था अब मुझे काम,
वो दिल्लगी के सपने,जरूरतों के नीचे दब गए,
अब ना कोई मोहब्बत थी,ना मोहब्बत का काम,  आशिकों की दुनिया से,मैं कटवा चुका था नाम।
लेखक -रितेश गोयल 'बेसुध'

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