बेरोजगारी

आज का युवा कितना ठना पड़ा है,
बेरोजगारी से उसका दामन सना पड़ा है,
डिग्रियों से उसका थैला भरा पड़ा है,
फिर भी नाकामी का टोकरा सिर पर धरा पड़ा है,
नौकरियों की हालत क्या है तुम देखो तो सरकार,
एक नौकरी पाने को आते कई हजार,
फिर भी नौकरी ले जाता है देखो रिश्तेदार,
क्या फायदा ऐसे शिक्षा का जो कोई काम ना आए,
रोजगार का एक भी अवसर आपको ना दिलवाए,
शिक्षा व्यवस्था को सुधार की बेहद जरूरत है,
शिक्षा का विकास ही बेरोजगारी का पूरक है।
जय हिंद।
जय भारत।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'

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