क्यूँ सुनाऊ गम मैं अपना,क्या कम हैं #गम ज़माने में,हर किसी ने खाई हैं शिकस्त,#मोहब्बत के शामियाने में,#दिल निकाल लेती हैं सीने से,ये #हुसैन की फुलझड़ियाँ,अब मुझ में बचा ही क्या हैं,जो बाँट दूँ ज़माने में। लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'
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