हुसन की फुलझड़ियाँ- एक दर्द भरी कविता (husain ki phuljhadiyaan- ek dard bhari kavita)

husain ki phuljhadiyaan- ek dard bhari kavita

 क्यूँ सुनाऊ गम मैं अपना,

क्या कम हैं #गम ज़माने में,

हर किसी ने खाई हैं शिकस्त,

#मोहब्बत के शामियाने में,

#दिल निकाल लेती हैं सीने से,

ये #हुसैन की फुलझड़ियाँ,

अब मुझ में बचा ही क्या हैं,

जो बाँट दूँ ज़माने में। 

लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'

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