गुनाहों का बेटा- gunahon ka beṭa

गुनाहों का बेटा

 छीन कर आबरु एक महिला की,

वो खुलेआम घूमता हैं,

वो गुनाहों का बेटा हैं,

पैसों के तख़्त पर बैठा हैं,

पीकर जाम न्यौछावर का,

न्याय उसके कदमों में सरेआम झूमता हैं,

जानकर भी सब आँखे मूँद कर बैठे हैं,

कब तक बचाओगे अपने घर की इज़्ज़त,

वो रोज़ एक नया शिकार ढूँढता हैं। 

लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'

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