हरियाणा

मैं दूध दही का खाना हूँ, 
बांगर का देसी बाना हूँ, 
खड़ी बोली का ताणा हूँ, 
लठ् का मार बजाना हूँ, 
जित चालै इभी चौधर बाप की,
मैं वो ए हरियाणा हूँ, 
मैं लापसी, मैं गोजी हूँ,
मैं बाजरे की नूनी रोटी हूँ,
मैं कुश्ती का अखाड़ा हूँ, 
मैं मास्टर जी का पहाड़ा हूँ, 
देश का मान बढ़ाना हूँ,
जहाँ छोरा-छोरी में फर्क नहीं, 
मैं वो ए हरियाणा हूँ, 
मैं अनु मालिक का गाना हूँ, 
जैमिनी सर का हँसाना हूँ, 
सरसो का खेत सुहाना हूँ, 
शेफाली का शतक लगाना हूँ, 
केजरीवाल सा शयाना हूँ,
हर काम में जिसका डंका बाजै, 
मैं वो ए हरियाणा हूँ, 
मैं यारी का निभाना हूँ, 
हँसने का बहाना हूँ,
मैं कृष्ण का गीता सुनाना हूँ, 
अर्जुन का सुनते जाना हूँ,
मैं नरसी सा मनमौजी हूँ, 
मैं बॉर्डर पे तना फौजी हूँ, 
मैं दुश्मन का खून सुखाना हूँ, 
मैं वीरों का लहू बहाना हूँ, 
हँसते-हँसते जो मिट जाए वतन पर, 
मैं वो ए हरियाणा हूँ। 
जय हिंद। 
जय भारत। 
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'


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