इश्क़ का लिफ़ाफ़ा- ishq ka lifafa

 

इश्क़ का लिफ़ाफ़ा

बहुत दिनों से क़ैद हुँ तेरे इश्क़ के लिफ़ाफ़े में,

मन मेरा भी करता हैं खुली हवा में उड़ जाऊ,

आज रविवार हैं श्रीमती जी,

आज्ञा हो तो बाहर होकर आऊँ,

मैं भी देखुँगा नज़ारे,उन हसीन बहारों के,

जिनके बारे में पढ़ा था किस्से और अखबारों में,

मेरे अन्तर्मन को भी सांत्वना मिल जायेगी,

आँखों की तपन भुझेगी,बेरंग ये मेरी ज़िन्दगी रंगीन दिखेगी,

सुनो बाहर बेहद सर्दी हैं,

तुम्हारी सारी बहारें कम्बल ओढ़ कर घरों में दुबकी बैठी हैं,

फ़िर भी तुम्हें जाना हैं तो जाओ,ठिठुरती हवा का आनंद उठाओ,

हम तो घर पर ही अपना इतवार मनायेंगे,

आप निकलो तो हम पड़ोस वाले गुप्ताजी को चाय पर बुलायेंगे,

अरे भाग्यवान तुम तो युही नाराज़ होती हो,

चलो हम अपना अवकाश तुम्हारे साथ ही मनायेंगे,

तुम चाय चढ़ाओ मैं समोसे लेकर आता हुँ,

अपनी मोहब्बत की चटनी से लगाकर दोनों चाय समोसे खाएँगे।

लेखक -रितेश गोयल 'बेसुध'  

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