कत्ल होता था हथियारों से पहले जमाने में,
आज-कल तो लोगों की जुबान की धार ही काफी हैं,
दूसरों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं,
जख्म कुरेदने के लिए अपनों के सवाल ही काफी हैं,
क्यों सहते हैं सहने वाले इन अत्याचारों को,
जबकि जवाब में एक लात ही काफी हैं।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'
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