सकारात्मक

रोज़ पलटता हूँ मैं पन्ने अपनी किस्मत के, 
ताकि अधूरे ख़्वाबों को उड़ान तो मिले, 
एक मशाल मैंने दिल में जला रखी हैं, 
ताकि सफलता की ज्योति से ये अंधकार तो मिटे, 
चलते पानी की तरह मैं कल्ल-कल्ल करके बहता हूँ, 
अपनी असफलता को सफलता में बदलता हूँ, 
निराशा जब भी मुझ को घेर लेती है, 
मैं आशा के दीपक पर हाथों की औंट कर लेता हूँ, 
मेरा सकारात्मक खून अंदर से उबाल मारता है, 
और मुझ से कहता है तु कर सकता हैं, 
ना हार मान इसमें कुछ पल की देरी हैं, 
अगली सीढ़ी चढ़ सफलता सिर्फ तेरी हैं। 
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'

No comments