लोग जिसे इश्क़ कहते हैं कैसे उसको व्यापार लिखूँ।

कैसे अपनी हर व्यथा का तुझको मैं हकदार लिखूँ, 
दिल के बदले दिल देती हो,दिल के बदले दिल लेती हो,
लोग जिसे इश्क़ कहते हैं कैसे उसको व्यापार लिखूँ, 
तन्हाई में अकेले में मैं अक्सर देखो रोता हूँ, 
तुमसे तो कुछ कह नहीं सकता,
मगर खुद को बहुत कुछ कहता हूँ,
मालूम मुझे हैं अपने जीवन की हर बाधा, 
जानते हुए भी कैसे तुम्हें अपना दुखी किरदार लिखूँ,
रोने की  हम को इज़ाज़त हैं नहीं, 
फिर कैसे अपनी पीड़ा को आँसुओं का सैलाभ लिखूँ, 
लड़का हूँ मोहतरमा फिर कैसे खुद को लाचार लिखूँ, 
लोग जिसे इश्क़ कहते हैं कैसे उसको व्यापार लिखूँ। 
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'


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