मेरा किस्सा मोहब्बत का
मोहब्बत में सिर्फ रुसवाईओ ने ही मुझे अपना बनाया है,
हमने दिल से जिसे चाहा उसे किसी और की बाहों में पाया है,
अब रोशनी में आने से हमे डर लगने लगा है,
अंधेरों में ही हमने अपनी शख्शियत को छुपाया है,
अक्सर जो दिल में रहते हैं वो ही दिल तोड़ देते हैं,
बीच मझधार में अकेला छोड़ देते हैं,
कहा जाकर मैं अपने दर्द-ऐ-दिल पर मरहम लगाऊँ,
जब मरहम लगाने वाले ही दिल पर चोट देते हैं,
ये तो रोज़ का किस्सा हो गया मेरे जीवन का,
हम रोज़ सुबह उनसे दिल लगाते हैं,
और वो शाम होते-होते दिल तोड़ देते हैं।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
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