रोज सुन रहा हूंँ किस्से तेरी मोहब्बत के,क्या तुझ में अभी जान बाकी है,कितनों को आशिक बनाओगी जाना,क्या कोई दिन-ईमान बाकी है।लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
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