कृष्ण महिमा

आसमान से गूंँज उठी देखो धरती की ओर,
देवकी की आठवीं संतान,कंँस तुझे ले जाएगी तेरी मृत्यु की ओर,
डरे-सहमे उस कंँस ने छ: शिशुओं को पैदा होते ही मरवाया,
सातवें शिशु को योग माया ने अपनी माया से दूजे गर्भ में धारण करवाया,
देखो आ गया वो दिन कारावास जगमगा उठा उस दिव्य प्रकाश से,
जगत के पालक आए धरती पर लेकर के अवतार,
देवों ने आसमान से उन पर पुष्प बरसाए,
वासुदेवकी पुत्र वो यशोदा नंदन कहलाए,
देखकर उनकी बाँकि छवि सब खुशी से हर्षाए, 
अपने काल को मरवाने का कँस ने हर भरसक प्रयास करवाया,
मगर उसका एक भी प्रयास कान्हा के आगे ना टिक पाया,
कँस का भेजा हर राक्षस मिट्टी हो करके आया,
अब समय आ गया है कृष्ण की लीलाओं के बारे में बताने का,
उस मनोहारी छवि से सबको रूबरू करवाने का,
सब गोपियों में होड़ लगी है आज,कृष्ण किसकी मटकी से माखन खाएगा,
फिर कौन उसको चोर बनाकर यशोदा के पास ले जाएगा,
चेहरे पर मक्खन लगा हुआ है,वो मंद मंद मुस्काए, अपने छोटे पैरों से वह मेरी ओर आए,
यशोदा का नंदलाला सबके दिल का ताज है,
जिस धरा पर पैदा हुआ वो हमें उस पर नाज है,
धीरे-धीरे बड़े हुए वो सुंदरता में कोई भी टिके ना उनके आगे,
आते-जाते उन्हें सारी गोपियाँ खिड़कियों से झांँके, यमुना के तट पर कान्हा ऐसा रास रचाए,
अपनी बंसी की धुन पर सभी को नचाए,
मन करता मेरा भी के मैं  गोपी बन जाऊं,
कान्हा जी के साथ में मैं भी रास रचाऊँ,
भक्ति के सागर में मैं भी गोते लगाऊँ,
इस भवसागर से उनके साथ ही तर जाऊं,
गोकुल की गलियों में कृष्णा नाम का शोर है,
ब्रज में भी प्रचलित यही कृष्ण माखन चोर हैं,
कृष्णा अपनी लीलाओं से यूं ही सब को लुभाता रहा, कँस उनकी ख्याति सुन अपना दिल जलाता रहा,
एक दिन अक्रूर को कंस ने भेज दिया गोकुल,
बुला लिया श्री कृष्ण को मथुरा होकर के व्याकुल,
यही उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी,
उसकी जिंदगी होने वाली धूल थी,
उसके पापों का घड़ा भर चुका था,
वो श्री कृष्ण के हत्थे चढ़ चुका था,
स्वयं भगवान ने उसे यमलोक पहुंचाया,
जगत को फिर से पाप मुक्त करवाया,
आखिर में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का सार सुनाया,
कर्म का महत्व पूरी दुनिया को सिखलाया।
जय श्री कृष्णा। 
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध' 

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