नेतागिरी
नेता बनने का कीड़ा मेरे दिमाग में छोड़ा है,
नेतागिरी का पर्चा मैं भर कर आया हूंँ,
राजनैतिक दंगल काअग्निपथ काअग्निपथ मे लाया हूंँ, हर तरह से मैंने अपना प्रचार-प्रसार करवाया है,
अपना एक घोषणा-पत्र छपवाया है,
तरह-तरह के वादों से जनता को लुभाया है,
झूठ बोलने का हुनर मैंने रैलियों से पाया है,
घोषणा-पत्र में मेरे किए वादों की सूची कुछ इस प्रकार है,
राजनिति सिर्फ वादों का ही तो व्यापार हैं,
जनता अगर मुझको अपना नेता बनाएंँगी,
तो उनको कोई समस्या ही नहीं आएगी,
आशिकों के लिए मै अलग हस्पताल बनवाऊंँगा, मोहब्बत के मरीजों का जिसमे मुफ्त इलाज करवाऊँगा,
टूटे दिल वालों के लिए एक हेल्पलाइन लाऊंँगा,
दिल तोड़ने वालों से हर्जाना भरवाऊँगा,
हर मोहल्ले में रोज एक टैंकर भिजवाऊँगा,
सारे नशेड़ीयों को मुफ्त दारू पिलवाऊँगा,
पत्नी-पीड़ितों के लिए एक आश्रम खुलवाऊँगा,
पति को जानवर ना समझें यह पत्नियों को समझाऊँगा,
एक बार जो मुझ को गद्दी मिल जाएगी,
मांँ कसम मेरी तो लॉटरी लग जाएगी,
पांच साल बाद मैं फिर से आऊंँगा,
अपने झूठे वादों का मक्खन तुम्हें लगाऊंँगा,
तुम फिर से मुझे वोट दे देना,
मेरी रोजी-रोटी की खातिर नोट दे देना,
तुम ऐसे ही मुझ पर विश्वास बनाए रखना,
मुझको हमेशा अपना नेता बनाए रखना।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
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