दहेज प्रथा
लड़के के पिता ने शर्मा जी को बताया,
लड़के को पढ़ाने में हुआ 50 लाख का खर्चा है,
इसलिए यह एक करोड़ के दहेज का पर्चा है,
ऐसा मौका आपको फिर नहीं मिल पाएगा,
एक करोड़ में मेरा अफसर लड़का आपका दामाद बन जाएगा,
आपकी लड़की की तो लॉटरी लग जाएगी,
सरकारी अफसर की वो पत्नी कह लाएगी,
सोच समझकर शर्मा जी ने ले लिया कर्ज,
घर के कागज गिरवी रखकर,निभाया अपना फर्ज,
बेटी खुश रहेगी अपनी,यही सपना आँख मे पाला था,
खुद को कर्ज में डूबा कर,उसका भविष्य संभाला था,
मगर दहेज के लोभी कहां इतने में रुक जाते हैं,
एक मांग पूरी होते ही,दूजी मांग बताते हैं,
कुछ महीने बाद ही बेटी,फिर से घर पर आती है,
ससुराल की मांग का पर्चा पिताजी को दिखाती है,
बेचारे शर्मा जी की दिल की धड़कन बढ़ जाती है,
2 दिन बाद अस्पताल में उनकी मृत्यु हो जाती है,
शर्मा जी की मौत का कौन उत्तरदाई है,
किसके कारण उनकी अकाल मृत्यु आई है,
ना जाने कितने शर्मा जी रोज बलि चढ़ जाते हैं,
इस दहेज प्रथा के चक्कर में कितने मायके बिक जाते हैं,
दहेज के इन लोभियों को सबक सिखाया जाए,
दहेज देना ही ना पड़े,बेटियों को इतना पढ़ाया जाए।
जय हिंद।
दहेज की मांग बढ़ाकर यदि,समाज में बेटियां कम करवाओगे,
तो वंशबेल बढ़ाने वाली,फिर बहू कहां से लाओगे।
जय भारत।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
Post a Comment