इश्क़ की इबादत - एक हिन्दी कविता

इस जन्म में शायद मुझको हासिल ना हो वो हेसियत ,
जहां पर मुझको मिले तेरे आशिक़ी और ख़ैरियत ,
तेरी एक अदा पर कुर्बान मेरा सारा जहां हो जाए ,
चाहे फिर तेरे इश्क़ में ये जान चली जाए ,
तेरा इश्क़ तो इबादत है मेरी ,
तू ही मेरी पहली और आख़िरी चाहत है मेरी ,
अपनी इस इबादत को बया करू मैं कैसे ,
प्यार ,इश्क़ और मोहब्बत जैसे छोटे शब्दो में ,
मंदिर की देवी सी है वो , और मैं राह चलते का जूता हूँ ,
शक्ति उसकी इतनी विशाल जैसे सागर हो कोई अपार ,
मैं तो उस सागर की मछली मात्र हूँ यार ,
फिर भी इस छोटे से दिल ने सोचा है ये ,
उस विशाल सागर को भर लु अपनी अंजली में ,
माना की उसका मेरा मेल नहीं है ,
जीना मरना कोई खेल नहीं है ,
भाग में लिखा है जो वो एक दिन पूरा होगा ,
देखा है जो सपना मैंने क्या वो पूरा होगा।   

By - Ritesh Goel 'Besudh'

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