मेरी माँ - एक हिन्दी कविता

माँ तो बस माँ ही होती है , बच्चे से ही उसकी खुशियाँ होती है ,
रोता था जब भी मैं तो वो मुझको खूब हँसाती थी ,
खुद भूखी रह जाती चाहे मुझको भर पेट खिलाती थी ,
नींद नहीं आती थी जब मुझको तो वो लोरी मुझे सुनाती थी ,
जब कभी मैं उससे रूठ जाया करता था तो लाख जतन करके खूब मुझे मनाती थी ,
गलती कर देता जब मैं कोई तो वो सही राह दिखाती थी ,
माँ तो बस माँ ही होती है , बच्चे से ही उसकी खुशियाँ होती है ,
चलना भी नहीं आता था जब मुझको तो उसने मुझको चलना सिखाया ,
पढ़ना भी नहीं आता था जब मुझको तो उसने मुझको पढ़ना सिखाया ,
आज जब मैं बड़ा हो गया , लगने लगा अब जरूरत नहीं है उसकी ,
निकाल दिया घर से उसको , ये भी न सोचा ज़िन्दगी कैसे कटेगी उसकी , 
वो मुँह से कुछ भी न बोली , चुप-चाप चली गई भोली।,
माँ तो बस माँ ही होती है , बच्चे से ही उसकी खुशियाँ होती है ,
पछतावा करने की सोची तो वक़्त की सीमा निकल गई ,
सोचा माँ को ले आऊँ घर , तो माँ ही दुनिया से निकल गई ,
मरते -मरते भी उसने अपने बच्चे की खुशियाँ ही माँगी ,
मर कर भी मुझको , वो दे गई अनमोल सीख सुहानी ,
माँ तो बस माँ ही होती है , बच्चे से ही उसकी खुशियाँ होती है ,
मेरी तरह ए दुनिया वालों , माँ का तुम अपमान न करना ,
ममता की उस मूरत को , जग में यूँ बदनाम न करना ,
सिसक - सिसक कर निकले दम , इतना उसको परेशान न करना ,
हो सके तो मुझको कभी भी तुम माफ़ न करना ,
माँ तो बस माँ ही होती है , बच्चे से ही उसकी खुशियाँ होती है।


By - Ritesh Goel 'Besudh'

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