माँ

बचपन मे उंगली पकड़ कर चलना हमे सिखाती है,
हमे धूप से बचाने को खुद छाव बन जाती है,
खुद भुखा रहकर भी खाना हमे खिलाती है,
हमारी हर गल़ती को हँस के सह जाती है,
हमारे गुस्से पर भी वो अपना ढेरों प्यार लुटाती है,
जब़ हम थक जाते है तो बडे़ प्यार से लोरी गाकर हमको वो सुलाती है,
दोस्तों वो माँ कहलाती है।
BY- Ritesh Goel 'Besudh'
Vry nice lines ......,☺☺☺
ReplyDeletedhanyavad ji
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