इश्क़- एक खँजर
इश्क़ एक खँजर की तरह इस दिल में आ धँसा है,
कैसे बताए तुमको कितनी अंदर तक बसा है,
मिलता हूँ सब से चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर,
मगर आँख पढ़ने वालों से मेरा दर्द कहाँ छुपा है,
रंजिशों को कैसे बयाँ करू मैं शब्दों में,
जब कत्ल की हो मेरी मोहब्बत मेरे अपनों ने,
कभी मिलेंगे वो तो उन्हें बताएँगे,
जख्म कितने गहरे है उन्हें दिखाएँगे,
वो अपनी मुस्कुराहट का मरहम लगा देंगे,
तो जख्म सभी हमारे भर जायेंगे,
अब इससे ज्यादा मैं इश्क़-मोहब्बत के बारे में बोल नहीं सकता,
अपनी आँखों में जमे आँसुओं को बहने से रोक नहीं सकता।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'
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