अधूरा आशिक़
कुछ सवाल है मेरे क्या उनका जवाब दोगी,
यादों की किताब में रखने को फ़िर से गुलाब दोगी,
तुम कहती थी तुम्हें भी मोहब्बत है हमसे,
तो क्या मैं भी तुम्हें सताता हुँ क्या,
एक पल के लिए ही सही,
क्या याद बन कर आता हुँ क्या,
सो जाने पर ख्वाब क्या तुम्हें मेरे करीब लाता हैं,
मुझे खोने का डर क्या तुम्हें भी सताता है,
अगर ऐसा नहीं है तो तुम कैसे कहती हो,
तुम्हें भी हमसे मोहब्बत थी,
मैं तो अक्सर ही तुम्हारे ख्यालों में खोये रहता हूँ,
हमारी मीठी यादों से दिल के कमरे को संजोये रहता हूँ,
कैसे बताऊ मैं तुम्हें तुम मुझे कितना सताती हो,
रह रह कर के हर पल तुम मुझे बड़ा याद आती हो,
खैर यह तो इस इश्क़ की रिवायत हैं,
लड़किया मोहब्बत करके भूल जाती हैं,
फ़िर किसी और से शादी करके उसका घर बसाती है,
और फिर बच्चे हो जाने पर अपने उस आशिक़ को ही मामा बताती हैं,
बेचारे लड़के वो टूटे दिल के आशिक़ शायर बन जाते हैं,
और ऐसे ही मेहफ़िलों मे अपने अधूरे इश्क़ के किस्से सुनाते हैं, किस्से सुनाते हैं।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'
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