शहीदों को सम्मान

 खुद को जला कर ख़ाक किया,

जो भी किया देश के नाम किया,

सूली पर वो झुल गए,

उनका ना किसी ने नाम लिया,

उन मतवालों की कुर्बानी से ही आज हम आज़ाद हुए,

उनको ही सब भूल गए,

जिन्होंने खुद को बलिदान किया,

खून बहाया है अपना,

देश को स्वतंत्र करवाने में,

गर्दने कटवा दी अपनी,

हम गुलामों को आज़ाद करवाने में,

हज़ारों मशालें जलवाई उन बुझती हुई चिंगारियों ने,

तब जाकर पाया शिखर उन अहिंसा के सेनानियों ने,

गुलामी की आग को अपने हाथों से बुझाया हैं,

भविष्य को उस आग में झुलसने से बचाया है,

मगर आज वो भविष्य ही उन को नकार रहा हैं,

इतिहास का हवाला देकर कुछ और ही राग अलाप रहा है,

इतिहास के चश्मे पर तो अहिंसा की धूल जमी हैं,

मग़र फ़िज़ाएं बोल रही है जो उनके खून से सनी है,

उन अमर शहीद जवानों को नयी पीढ़ी दिल से याद करो,

उनकी कुर्बानी को तुम यूँ ही ना बर्बाद करो,

स्वतंत्रता की ख़ातिर खेली अपने खून से होलियाँ,

याद करो वो इंक़लाब की दिल से निकली बोलियाँ,

कुछ और नहीं कर सकते तो उन को दिल से प्रणाम करो,

देश पर मिटने वालों का दिल से तुम सम्मान करो। 

जय हिन्द। 

जय भारत। 

लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'


No comments