शायरी

तुम बारिश के जैसी हो सिर्फ मुझ पर ही बरसती हो,
काले मेघों के जैसे बस मुझ पर ही गरजती हो,
चढ़ा देती हो पानी मेरी बांध सीमा तक,
फिर तेरे गुस्से की बाढ़ में मैं डूब जाता हुँ,
मिलता नहीं किनारा मुझे फिर बरसात रुकने तक।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध' 

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