हसीन ख्वाब
तू एक हसीन ख्वाब है,जिसे देखता है बिरला ही कोई,
मैं एक फटा आस्तीन,जिसे ओड़ता है गरीब हर कोई, बातों में भी अपना मिलना नहीं,किसी चीज में अपनी तुलना नहीं,
तू एक खूबसूरत महल है जो बना है शीशे का,
मैं एक छोटा सा घरौंदा हूंँ जो बना है मिट्टी का,
कैसे छलकाऊँ घाघर प्रेम की,जो दिल के सागर में गोते खा रही हैं,
क्यों चाहता है एक छोटा सा पोखर,बनना सरोवर महलों का।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
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