महंगाई

महंगाई पर लिखने को कलम उठाई,
तो सबसे पहले अपनी तनख्वाह याद आई,
चार सालों से उसमें एक रूपया भी ना पढ़ पाया है,
लेकिन खर्च में बेहिसाब इजाफा आया है,
देश के बजट पर मैं तभी चर्चा कर पाऊंगा,
जब अपने घर का बजट मैं भर पाऊंगा,
आम आदमी के जीवन की यही सबसे बड़ी बाधा है,
सियासती बंधों के लिए वह सिर्फ एक प्यादा है,
अमीर पैसा कमाते हैं,
गरीबों के लिए सरकार योजना लाते हैं,
मध्यमवर्ग इन योजनाओं का बोझ उठाते हैं,
और फिर भी कुछ कह नहीं पाते है,
क्या मैं भी बात करूं उसी महंगाई की,
राशन,तेल,सब्जी और थोड़ी कमाई की,
इस महंगाई का असर इससे कहीं गहरा है,
इसमे बेरोजगारी,भ्रष्टाचार आदि समस्याओं का छिपा चेहरा है,
कब हमें इस दासता से मुक्ति मिल पाएंगी,
कब भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलाएंगी,
कब वह विकास से परिपूर्ण आजादी आएगी,
सामाजिक समानता का पाठ विश्व को सिखलाएगी।
जय हिंद।
जय भारत।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'

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