कत्ल करके उसूलों का मेरे, ग़रीबी मेरी रोई हैं, कब तक कंधे पर नेकी की अर्थी संभालु, चंद नोटों की खातिर इंसानियत मैंने खोई हैं। लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'
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