बनिये का प्यार-baniyekapyaar

 

बनिये का प्यार

कल कॉलेज गया मैं पहली बार,

वहाँ एक लड़की से मुझे हो गया प्यार,

आँखों ही आँखों में इशारा हो गया,

ये बनिये का लड़का भी आवारा हो गया,

ये इश्क़ में और तो सब ठीक था,

बस एक बात थी जो मुझको सता रही थीं,

वहाँ हर बंदी अपने बन्दे के पैसे उड़ा रहीं थी,

सब जानते हुए भी इस कुर्बानी को अंदर का सख्त लोंडा बिल्कुल तैयार था,

बस वो बनिया दिमाग़ ही पैसों पर सवार था,

डरते-डरते फ़िर भी मैंने कर दिया मोहब्बत का इज़हार,

और उस लड़की ने भी तुरंत ही कर लिया स्वीकार,

पर तभी ये बनिया दिमाग़ फिर से जाग गया,

और शर्तो का एक दस्तावेज उसके सामने टाँग गया,

शर्ते कुछ इस प्रकार थी कि,

जानू मैं तुमको सीमेना दिखाऊंगा,

मग़र इंटरवल में पोपकोर्न नहीं खिलाऊँगा,

होटल में तुमको खाना भी खिलाऊँगा,

मगर चार सौ रूपये से ऊपर नहीं जाऊँगा,

शॉपिंग करोगी तुम तो तुम्हारा कुली बन जाऊँगा,

मगर शॉपिंग का बिल शादी के बाद ही चुकाऊँगा,

अगर तुम्हें मेरी ये सारी शर्ते है मंजुर,

तो तू ही है आज से मेरा शाही अँगूर,

इतना सुनते ही वो लड़की सकपका गयी और बोली,

भइया, क्यों इतना कष्ट उठाते हो,

हम तो किसी और को ही अपना रहबर बना लेंगे,

आप क्यों ना आगे बढ़कर कोई बनिया लड़की पटाते हो,

क्योकि वो भी आप ही तरह कंडीशन अप्लाई हैं ,

और बनिया को सहने की क्षमता सिर्फ बनिया ने पाई है। 

लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध' 

 


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