एक भी हसीना को मैं आंँखों से बचकर जाने नहीं देता,
दिल से शरीफ हूंँ,एक भी कसीदा उनके लिए मैं जुबान पर आने नहीं देता,
पतियों की उस कोम से मैं ताल्लुक रखता हुँ,जो डरता है बीवी से,
फिर भी ताड़ने का एक भी मौका मैं हाथ से जाने नहीं देता।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
Post a Comment