कंजूस पुराण-hasyakavita
आज मैं कंजूसों पर एक आर्टिकल पढ़ रहा था तो उस से प्रेरित होकर मैंने ये कविता लिखने का प्रयास किया है आशा करता हूँ आप सभी को पसन्द आएगी।
आओ सुनाऊ कंजूसों की कहानी,
छै तरीक़े के होते है इस श्रेणी में प्राणी,
पहले वो होते है जो अपनों के सामने अपनी तंगी का रोना रोते है,
लेकिन शाम को फ़िर भी दारू पी कर सोते है,
अपनी हर इच्छा पूरी करते मगर अपनों की इच्छाओ पर गरीबी का घाव संजोते है,
इस श्रेणी के सभी प्राणी स्वार्थी कंजूस होते हैं,
दूजी श्रेणी के लोगों का आज जग में बोलबाला है,
इनका हर एक एक्शन चिंदिगिरी वाला है,
अपने हर एक हाव भाव में ये टुच्चागिरी दिखाते है,
इसलिए सब इनको टुच्चा कंजूस बुलाते है,
तीजे नम्बर का कंजूस मुफ़्तखोर कहलाता है,
दुनिया से वो हर चीज़ मुफ्त में पाना चाहता है,
चौथी श्रेणी के कंजूस पैतृक कंजूस कहलाते है,
कंजूसी का गुण वो अपने माता-पिता से पाते है,
बचपन से ही उनको सब सिखाया जाता है,
कंजूसी की इस कला में पारंगत बनाया जाता है,
पाँचवी श्रेणी का कंजूस सिद्धांतो का रोना रोता है,
दहेज़ लेने को ठीक और देने को ग़लत समझता हैं,
अपने लालच को वो अपने अधूरे सिद्धांतों में छिपाता हैं,
इस श्रेणी का कंजूस पूंजीपतियों में बहुतायत पाया जाता हैं,
आख़िरी श्रेणी के कंजूस अहंकारी कहलाते है,
खुद को सब के जीवन में लाभकारी बताते है,
ये कंजूस दुनिया में सबसे ज्यादा बेइज्जती करवाते हैं,
एक ही तरीक़े से कई बार ठगे जाते हैं।
लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'
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