पहली मुलाक़ात

एक मीठा सा एहसास लगता है,
खुशियों का अनुराग लगता है,
होती है जब उनसे पहली मुलाकात,
तो दिल में जज्बातों का सैलाब लगता है,
महसूस करता हूँ मैं उन नए-नए उन्मादों को,
ताज़ा-ताज़ा खिल रहे उन भावों के उल्लासों को,
अठखेलियां करता है मन जैसे बच्चा कोई बच्चपन में,
भूल जाता हूँ सारी होशियारी भावों के इस उद्वेलन में,
आँखों पे छा जाती बस एक उसकी छाया मनोहारी,
फिर कुछ भी नहीं दिखता मुझको खो जाती है सुध-बुद्ध सारी,
ये कैसी पीर विरह की लगी कैसी है ये लाचारी,
बेचैनी बढ़ती जाती है साथ में जुंजलाहट भारी,
अब तो बस जब मिलन ही होगा तब ही भावों का संगम होगा,
अनुराग फ़िर पुलकित होगा भावों का मुक्ति फल होगा।

By-Ritesh Goel 'Besudh'

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