घोड़ी पर चढ़ते वक़्त हर शादीशुदा ने टोका था, दोस्तों ने हाथ पकड़कर चढ़ने से रोका था, मगर मैं नहीं माना ले ही आया बारात, आखिरकार मुझे भी पड़ गयी शादी वाली लात। लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'
Post a Comment