मन से गुलाम
हम आजाद हो गए,हमारा संविधान भी बन गया,
सरकारें बदल गई,नेता भी बदल गए,
पर हमारी मानसिकता वही के वही रह गई,
आज आज़ादी को 75 साल हो गए,
मगर हम मन से फिर भी गुलाम रह गए,
आज भी हम उन अंग्रेजी नीतियों का अनुसरण करते हैं,
वही सरकारी नौकरी पाने को तरसते हैं,
हिंदी का अंग्रेजी के सामने बुरा हाल है,
शिक्षा व्यवस्था बेहद बदहाल है,
अगर ऐसे ही हम अंग्रेजी नियमों से बच्चों को पढ़ाएंगे,
तो आने वाली पिढीयों में सिर्फ नौकर ही रह जाएंगे, प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था को फिर से अपनाना होगा,
सोए हुए ज्ञान को फिर से जगाना होगा,
एक बार जो शिक्षा व्यवस्था सुधर जाएगी,
तो बाकी समस्याएंँ तो फिर अपने आप ही सुलझ जाएंँगी,
मुफ्त में यहांँ कुछ भी नहीं मिलता,
हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है,
अगर आरक्षित को कोई सुविधा मुफ्त में मुहैया कराई जाती है,
तो उसकी कीमत अनारक्षित की आमद से जुटाई जाती है,
अज्ञानता ही सभी पैदा हो रही समस्याओं का जनक है,
शिक्षा व्यवस्था में सुधार ही इन समस्याओं से निजात पाने का एकमात्र विकल्प है।
जय हिंद।
जय भारत।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
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