गोवेर्धन पूजा- govardhanpuja

 

krishna

कोई कहता छलिया उनको कोई माखनचोर,

देवकी से जन्मे वो कहलाये यशोदा के लाल ,

उनकी एक लीला का आज मैं करता हूँ बखान,

जिसमे गोवर्धन पर्वत को दिया उन्होंने सम्मान,

कथा कुछ इस तरह से प्रारम्भ होती है ,

चौकी सजी हुई है और इन्दर देव की पूजा होती है,

वहाँ पर श्री कृष्ण ने दिया अपना सुझाव,

गोवेर्धन गिरिराज को पूजेंगे हम आज,

क्योकि उन्हीं से मिल रहा है हमको सब जरुरत का सामान,

तो वही है आज से हमारे आराध्य पूजनीय भगवान,

इस पर कुपित हो इंदर देव ने भीची अपनी जाड़,

बृज में शुरू हो गयी मूसलाधार बाढ़,

आसमान ने अपना विकराल रूप दिखलाया,

बिजलियों ने कड़क कर डरावना माहौल बनाया,

मगर श्री कृष्ण में सबकी श्रद्धा थी अपार,

इसलिए सभी ने पूजा सम्पन की बिना कोई तकरार,

अब भगवान श्री कृष्ण ने विराट रूप अपनाया,

गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्क ऊँगली पर उठाया,

गिरिराज ने सब भक्तों को अपने नीचे ठहराया,

इंदर देव का गुस्सा किसी काम ना आया,

अहंकार ने बुद्धि ठगी थी हुआ जब दिव्य ज्ञान,

हाथ जोड़ कर श्री कृष्ण के समक्ष खड़े थे इंदर देव भगवान,

तब ही से बृज में गोवर्धन पर्वत की पूजा का विधान हैं,

आप सभी भक्तों को कोटि-कोटि प्रणाम हैं। 

जय श्री कृष्णा। 

लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'



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