सब्जियों का रिश्ता

नमस्कार दोस्तों।
ये कविता मैंने यु ही मस्ती में लिखी थी।
आशा करता हूँ आप को पसंद आएगी।

सब्जियों का रिश्ता
भिंडी ने कर ली करेले से शादी,
आलू बेचारा कुंवारा रह गया,
बैंगन का जल के भरता बन गया,
जबसे गोभी का यार टिंडा हो गया,
हरी मिर्ची की एठन बढ़ती ही जाती,
जब से टमाटर ने उसको हामी  है भर दी,
ठेलों की थाली में गाजर और मूली,
होटल के खाने में प्याज इक्का हो गया,
घिया और तोरी मरीजों की सब्जी,
बुजुर्गों में उनका सिक्का हो गया,
पालक को मेथी पसंद आ गई,
अरबी का नींबू से रिश्ता हो गया,
मटर के घर आई है बारात पनीरी,
कटहल का बनना तो पक्का हो गया,
परमल और कद्दू को तेरे लिए छोड़ा,
तुझसे मेरा बदला भी पूरा हो गया।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'

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