आरक्षण
बहुत दिनो से लिखा नही कुछ ,
आज कलम उठाई है,
बहुत कुछ है लिखने को दिल मे,
देखते है किसकी बारी आई है।
आरक्षण
बहुत ध्यान से पढ कर मैंने 85 प्रतिशत अंक पाए,
मेरे आरक्षित मित्र के 45 प्रतिशत आए,
नौकरी के लिए लगा रहा हु अब आफिसों के चक्कर,
85 प्रतिशत वाला ये जनरल बन गया घनचक्कर,
बहुत दौड - धुप के बाद चपरासी की नौकरी पाई,
वहाँ के अफसर निकले अपने आरक्षित भाई,
यह बात कुछ मेरे समझ नहीं आई,
45 प्रतिशत मे कैसे उसने अफसर की पदवी पाई,
हम से अच्छा तो वो ही रहा भाई,
पुरी जवानी मौज मे बिताई,
हमारी तो पढाई भी किसी काम ना आई,
काश हम भी आरक्षित होते भाई,
आज मैं उसके झुठे बर्तन उठा रहा हुँ,
शाम को उसकी बीडी़ भी ला रहा हुँ,
आरक्षण का फर्क सिर्फ इतना पडा यारों,
वो बैठ कर कुर्सी पर सिगरेट का धुँआ उड़ाता है,
मै फाईलें झटक कर सारी उनकी धुल हटाता हुँ।
By - Ritesh Goel 'Besudh'
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